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Raj Senjaliya
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The Quest - A Search for the True Self and Purpose

अपडेट करने की तारीख: 19 जून

What do we really know? That’s a question my friend and I often discuss. Over countless conversations, we’ve tried to peel back the layers of life, purpose, knowledge, and identity.

One day, he wrote a piece - strange, satirical, yet unsettlingly familiar - a story that mirrored everything we tend to ignore..

I want to begin this quest with his words, because they opened a door in my mind.

And once that door opened, I couldn’t help but walk through it…


Yagnik Makani & Raj Senjaliya


The Quest - Yagnik Makani & Raj Senjaliya

The Lion Who Burnt the Forest


करीब दस हजार साल पहले की बात हैं, पृथ्वी पर कुछ शेर रहते थे | जब भूख लगे तब खाते, जब नींद आए तब सोते और जहा चाहे वहा घूमते | उन्हें बस एक ही डर था कि कहीं उनकी यह आज़ादी छीन न ली जाए । एक दिन जंगल में आग लगी, एक शेर ने उसे देखा ......... वह बस देखता ही रहा | शेर को छोड़ कर सिर्फ कुछ ही जानवर इस आग से बच सके | जब शेर ने बाकी शेरो की लाश देखी तब थोड़ा घबरा गया | फिर बहुत सारे शेरों के जले हुए शरीर दिखे और शेर फिर साधारण हो गया | शेर का सारा खाना जल गया हैं, अब उसके पास मरे हुए जानवरों को खाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था | शेरने जैसे तैसे कर के एक जली हुई बकरी को खाया, हालाँकि उसे वह खाना स्वादिष्ट तो नहीं लगा पर कुछ महीने तक इसी तरह का खाना खाने का आदि हो गया | जब तक जंगल में स्थिति साधारण हुई, तब तक शेर जला हुआ खाना खाने का आदि हो गया था | पर अब प्रश्न था की अब आग लगाए कैसे?


करीब एक साल लग गया अगली आग लगने तक | इस बार सिर्फ आग को देखने के बजाय शेर ने सोचना चुना, की आखिर यह चीज ऐसे कैसे प्रगट हो सकती हैं? कुछ समय बाद उसे किसी तरह से पता चल गया की आग किस तरह से लगती हैं ! अब शेर ने फिर सोचना बंध कर दिया और जब यह आग शांत हुई तब फिरसे जंगल को जलाना शुरू किया , कुछ समय बीता, फिरसे जंगल के बहुत सारे जानवर इसी आग में जलकर मर गए | कुछ समय बाद शेर के खाने के लिए कोई जानवर नहीं बचा।


फिर शेर ने घास खाना शुरू किया | इस बार वह घास को भी जलाकर खाने लगा, हालाँकि यह भी कुछ खास स्वादिष्ट नहीं था पर फिर वही शेर के पास ओर कोई चारा नहीं था | इस समय के बीच वह किसी तरह यह भी जानने में सक्षम रहा की घास किस तरह उगती हैं | अब शेर खेती करने लगा हैं , शेर खेती की वजह से स्थायी हो गया हैं | कुछ महीनों तक शेर बीमार रहा, वह खेती नहीं कर पाया और भूखा ही रहना पड़ा इसी बीच शेर व्यापार करना सिख गया |


हजारों साल बित गए हैं |


अब शेर समाज दुरुस्त हो गया हैं, कम से कम उनकी नजरों में ! अब “शेर समाज” घास पर चीज लगाकर खाने लगा हैं | कुछ दिन पहले ही कुछ विज्ञानी शेरो ने एक रॉकेट को चंद्रमा पर भेजा हैं सिर्फ अपनी अज्ञान की पूर्ति के लिए ! अब आपको लगता होगा की सब सही ही चल रहा हैं, पर अफसोस ! अब पूरे एक शेर समाज का भी 2-3 ओर समाज हैं | सारे शेर समाज को ऐसा ही लग रहा हैं की उनका समाज ही सबसे ज्यादा अक्लमंद हैं | पर फिर वही एक दिन आएगा जब इंसान समाज का कोई एक इंसान आकर उसे सर्कस में नचाने लगेगा ! खैर अब इंसान समाज को भी क्या पता की कुत्ता समाज उसे गधों के नाम से जानता हैं !


हो सकता हैं यह कहानी आपको बहुत अधूरी और बहुत बकवास लगे, पर बस अब तक की हैं ! पता नहीं की अक्सर हमें ऐसा क्यों लगने लगता हैं की हम अपनी मर्जी से जी रहे हैं? सच कहूँ तो हम चाहकर भी अपनी मर्जी से नहीं जि सकते | हम प्रकृति के बीच रहते हैं, प्रकृति जहा चाहे वहाँ हमे ले जा सकती हैं | आइये इसे कुछ प्रश्न से समजते हैं |


वो कौनसी चीज थी जो शेर समाज को रॉकेट बनाने तक ले आई? अज्ञान की स्वीकृति ? अगर वाकई में यह सिर्फ अज्ञान की स्वीकृति थी तब क्या इसमें “आग” की कोई भूमिका नहीं थी ? अगर इसमे आग की ही भूमिका थी तो फिर यह आग लगाई किसने ? दो पेड़ के घर्षण ने ? अगर आग सिर्फ दो पेड़ के घर्षण से ही लगी थी तो यह निश्चित किसने कीया की दो पेड़ के घर्षण से आग निकलेगी ? प्रकृति ? हमारे सारे प्रश्न प्रकृति पर आकर ही रुकते हैं | सच पूछा जाए तो सारे जानवर समाज को यह स्वीकार करना ही होगा की हमे वाकई में कुछ पता नहीं हैं | अभी तक सच्चाई जानने के लिए हमारे पास सिर्फ एक ही उपाय रहा हैं विज्ञान | क्योंकि सब कुछ तो लिख दिया गया हैं धार्मिक पुस्तकों में !


पर एक उत्तर यह भी हो सकता हैं की अभी तक का सफर हम प्रकृति और अज्ञान की स्वीकृति से यहाँ तक तय कर पाए हैं भले ही हमे उसके बारे में ज्यादा पता न हो | हमारी अज्ञान की स्वीकृति में ही विज्ञान छुपा हैं जो शायद इस अज्ञान को ज्ञान में परिवर्तित कर सकता हैं | या फिर वह भी प्रकृति की कोई चाल हैं !


Grey Hope

The Lion Society - Yagnik Makani

थोड़े दिन पहले मैंने अपने घर पे एक छिपकली देखी | वह कद में ज्यादा बड़ी नहीं थी फिर भी मैं चैन से बैठ न पाया | थोड़ी देर बाद मैंने अपने कमरे से झाड़ू निकाला और उस छिपकली को वहा पर ही मार दिया | हालाँकि वह शत प्रतिशत नैतिक तो नहीं था पर मेरी शांति के लिए जरूरी था, मुझे कुछ हद तक अफसोस भी हैं की मैंने उसे मारा !

कई सालों से यही चलता आ रहा हैं, शक्तिशाली जीव कमजोर को मार देता हैं और वह नैतिक हो जाता हैं | चलिए अब कहानी को आगे बढ़ाते हैं |


शेर ने जब शुरुआती दिनों से दूसरे जानवरों को मारकर माँस खाना शुरू किया तबसे वह निर्दोष ही था | सब चीजे साधारण ही चलती थी, पर जब शेर समाज मानसिक तौर पर विकसित हुआ तब सब बदलने लगा | अभी कुछ दिन पहले ही एक शेरनी को मार दिया किसी शेर ने ! अब यह बन गया हैं सरासर अपराध ! क्योंकि शेर समाज की किताब में यह लिख दिया गया हैं की यह गुना हैं अगर कोई शेर होकर “शेर समाज” के अन्य शेरों को मारे |


ज्यादातर सभी शेरों को सिर्फ एक ही शेर पर शक था जिसका नाम था रावण | दूसरे शेरों के पास इसके बारे में कोई सबूत नहीं थे पर उसकी नियत पर पूरा शक था | किसी तरह से इस केस की तहकीकात हुई और अंत में रावण को ही दोषी पाया गया |


अब वह कौनसी चीज हैं जिनके आधार पर रावण दोषी हैं ? किसी को मारना ? अगर यह दोषी शेर जैल मैं सुसाइड कर लें तो क्या उस पर एक और अपराध लगेगा? शायद नहीं ! क्योंकि जब शेर ही नहीं रहा तो फिर सजा किसे देगे ? अगर यह शेर किसी बीमारी से मरता हैं तब क्या हम प्रकृति को सजा दे पायेगे? मरना क्या हैं ?

सदियों से चलती आ रही परंपरा !


जिसे ना अब तक को कोई टाल पाया हैं और ना ही कोई समझ पाया हैं | सभी जीवों में सबसे ज्यादा साधारण चीज कौनसी हैं ? जन्म, मृत्यु ! क्या हमे इसके बारे में एक प्रतिशत भी ज्ञान हैं ? अगर नहीं तो फिर हम उस शेर को दोषी मानने पर क्यूँ लगे हुए थे ? जबकि हो सकता हैं की वह शेरनी अब इस जगत का सारा सच जान गई हो |


अकसर जब हम एक ही चीज को बार बार देखते हैं तब हमारे मन में प्रश्न उठने लगते हैं क्योंकि पहली बार देखने पर केवल बच्चों को ही प्रश्न उठ सकते हैं बड़ों को नहीं | हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए बहुत सारे प्रयास करते हैं और जब यह प्रयास बहुत सारे लगने लगते हैं तब हम इस प्रश्नों को पूछे बिना ही स्वीकार करने के आदि हो जाते हैं और हम साधारण हो जाते हैं |


मुझे पता नहीं की यह साधारण होने की भेट प्रकृति जीवों को देती हैं या फिर जीव अपने आप ही इसे पाते हैं ! पर मुझे अब तक के ज्ञान से लग रहा हैं की मनुष्य की अब तक की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड यह भी हैं की वह किसी भी चीज को लेकर साधारण हो सकता हैं, चाहे उसे वह चीज समझ में आए, ना आए | जब मैं मृत्यु के बारे में सोचता हूँ, तब मैं वाकई में यह सोचकर खुश होता हूँ की मैं और “अंबानी” दोनों मरने वाले हैं और दोनों को ही जला दिया जाएगा और बाद के कोई भी कार्यक्रम शायद हम नहीं देख पायेगे, और अगर किसी तरह हम दोनों स्वर्ग में मिल भी गए तो फिर हम दोनों का ईश्वर पर से भरोसा उठ जाएगा | खैर छोड़ो ! बस वहाँ पर वह “शेरनी” ना हो ! वरना मेरा तो कच्चा माँस चबा जाएगी, छिपकली को तो मैं वहाँ भी निपटा दूंगा |


अब तक के सफर में शत प्रतिशत सत्य को जानने के लिए हमारे लिए सिर्फ तीन ही रास्ते दिख रहे हैं एक हैं, पहला विज्ञान , दूसरा मृत्यु (मैं उम्मीद करता हूँ की ईश्वर इसमें भी कोई मजाक ना कर दे ), तीसरा साधारणता (कभी हमें ईश्वर भी साधारण लगने लगे!)


The Start - Questions

The Quest - Mystery of Existence

मेरे सवाल ही इस खोज की वजह थे। और वे आज भी वहीं हैं। मैं हमेशा सोचता हूँ: यह ब्रह्मांड क्यों मौजूद है? जीवन का विकास क्यों होता है? और जिस जीवन को हम जी रहे हैं उसका उद्देश्य क्या है? मुझे यकीन है कि आप में से कई लोगों ने भी यही सवाल पूछे होंगे। पाँच बड़े पैमाने पर हुए विलुप्तिकरण (mass extinctions) के बाद, अनगिनत जीवन रूपों का विकास हुआ और वे गायब भी हो गए। लेकिन जटिल जीवन रूपों में एक मौलिक प्रेरणा हमेशा से रही है - अधिक समय तक जीना, अपने जीवन को अधिक आरामदायक बनाना।


जब मैं रात के आकाश को, तारों को, चाँद को, और बहते बादलों को देखता हूँ, तो मैं थम सा जाता हूँ। मैं खुद से पूछता हूँ: मैं इतनी मेहनत क्यों कर रहा हूँ? और इसका जवाब मुझे हमेशा मिलता है: अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए। मैं अपने परिवार को एक बेहतर जीवन देना चाहता हूँ। और मुझे पता है कि आप में से कई ऐसा ही महसूस करते हैं। लेकिन फिर एक गहरा सवाल आता है: क्यों? हम ये चीजें क्यों चाहते हैं? क्या ये लक्ष्य वास्तव में हमारे हैं, या सिर्फ हमारी कंडीशनिंग के उत्पाद हैं, बिना सवाल किए पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही आदतें, सिर्फ इसलिए कि हमें इसी तरह बड़ा किया गया था?


तो, इस जीवन का असली उद्देश्य क्या है? वास्तव में हम कौन हैं? क्या इन सबके पीछे कोई गहरा अर्थ है? ये विचार मुझे फिर से उसी सवारी पर ले जाते हैं। तो, सीट बेल्ट कस लीजिए, क्योंकि हम एक बार फिर मेरी रोलरकोस्टर में कदम रख रहे हैं। और बस एक हल्की सी याद दिला दूँ: मेरी सवारी पर उल्टी करना मना है।


जीवन सुंदर है, है ना? जब हम चारों ओर देखते हैं, तो हमें ब्रह्मांड में, ब्रह्मांड के संचालन के तरीके में, मौलिक शक्तियों के नृत्य में, और उप-परमाणु कणों के अजीब व्यवहार में सुंदरता मिलती है। और फिर भी, जितना अधिक हम इस भव्य रहस्य को सुलझाने की कोशिश करते हैं, वह उतना ही जटिल होता जाता है। महान दिमागों ने जवाबों की तलाश में अपना पूरा जीवन लगा दिया है, अनगिनत बलिदान दिए हैं। लेकिन इतने प्रयासों के बाद भी, अस्तित्व का रहस्य अनसुलझा है।


हमने देवताओं की कल्पना की है, बिग बैंग का अध्ययन किया है, मल्टीवर्स के बारे में अटकलें लगाई हैं, लेकिन फिर भी, यह सब तार्किक सोच की पकड़ से परे है।


व्यक्तिगत स्तर पर, जब मैं खुद को देखता हूँ, तो ऐसा लगता है कि मैं परिवार, समाज, धर्म, कंडीशनिंग और यहाँ तक कि अपनी सोच द्वारा निर्धारित सीमाओं में फँसा हुआ हूँ। और जब मैं गहराई से देखने की कोशिश करता हूँ, तो मुझे एहसास होता है कि मैं जो कुछ भी करता हूँ, उसमें से अधिकांश कभी भी मेरे पूरे नियंत्रण में नहीं होता है। मेरे विकल्प हमेशा किसी न किसी चीज़ से प्रभावित होते हैं।


मैं खुद को पिंजरे में महसूस करता हूँ, खुद को सही ठहराने के बीच फँसा हुआ हूँ, "क्या सही है" और "क्या गलत है" के बीच। लेकिन मेरा सही आपका सही नहीं हो सकता, और आपका सच मेरा भ्रम हो सकता है।


यकीन है, शायद एक दिन मैं आर्थिक रूप से सफल हो जाऊँगा। शायद मैं अपने परिवार को एक बेहतर जीवन दूँगा। शायद मैं शांति से जीऊँगा। लेकिन क्या हम वाकई इसी के लिए जी रहे हैं? सिर्फ एक दिन मरने और धन का ढेर पीछे छोड़ने के लिए? भले ही मेरे अच्छे कर्मों के कारण मुझे कुछ समय के लिए याद किया जाए, क्या इससे वास्तव में कोई फर्क पड़ेगा?


मुझे इन सबका जवाब नहीं पता, लेकिन मैं कुछ सुझा सकता हूँ, कुछ ऐसा जिसका मैं खुद पालन करने की कोशिश करता हूँ। हमें "स्वयं" पर सवाल उठाना शुरू करना होगा। जब हम "मैं" कहते हैं, तो हम वास्तव में किसका जिक्र कर रहे होते हैं? क्या यह अनुभवों, यादों और जानकारी का सिर्फ एक संग्रह नहीं है, कुछ जीवन के माध्यम से इकट्ठा किया गया है, कुछ जीन्स के माध्यम से पारित किया गया है? तब स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठता है: हमारा सच्चा स्व क्या है? चेतना अस्तित्व में कैसे आती है? क्या यह धारणा या स्मृति से अलग है?


यह वह रहस्य है जिसने सदियों से मनुष्यों को परेशान किया है। हमने इसे धर्म, ईश्वर, दर्शन और हाल ही में विज्ञान के माध्यम से समझाने की कोशिश की है। लेकिन जितना अधिक हम सत्य के करीब जाने की कोशिश करते हैं, वह उतना ही दूर लगता है, और भी अधिक जटिल और दूर का होता जाता है। मैं स्वयं की सच्ची प्रकृति को जानने का दावा नहीं कर रहा हूँ, और यह खोज भी यह साबित करने के बारे में नहीं है कि कौन सही है या गलत। मैं बस उद्देश्य, अर्थ और शांति की तलाश पर कुछ प्रकाश डालना चाहता हूँ।


Getting to know Self

The Discovery of Self - Raj Senjaliya

मेरे ज्ञान के अनुसार, जीवन पेचीदा है। यह उथल-पुथल से भरा है, जैसा कि बुद्ध ने इसका वर्णन किया है। हर किसी के अपने मकसद होते हैं, उनका पीछा करते हैं, भले ही इसमें दूसरों को नुकसान पहुँचाना शामिल हो। इस अराजकता से निपटने के कई तरीके हो सकते हैं। मुझे नहीं पता कि मेरा तरीका सही है या नहीं, और मैं गलत होने के लिए भी तैयार हूँ।


एक संभावित तरीका, शायद पहला और अधिक व्यावहारिक, एक पूरी तरह से शांत जीवन का पीछा करना बंद करना है। हम में से कई लोग इस जीवन से नफरत करते हैं, क्योंकि हमेशा कुछ न कुछ गलत होता रहता है। हम एक ऐसा जीवन जीते हैं जहाँ प्यार भी है और नफरत भी। जरूरतें भी हैं, लेकिन दूसरी ओर, लालच भी है। और मुझे लगता है कि यहीं हम में से अधिकांश इस लड़ाई को, इस जाल में, हार जाते हैं। लेकिन, वास्तविकता में, जीवन इन्हीं चीजों के बारे में है, यह इसे स्वीकार करने के बारे में है। मुझे पता है कि दूसरों से नफरत को खत्म करना मुश्किल है, लेकिन कम से कम हम दूसरों से नफरत करना बंद कर सकते हैं, छोटे से छोटे पैमाने पर भी। मैं जानता हूँ कि हर कोई अपने अंदर से लालच को पूरी तरह से नहीं निकाल सकता, लेकिन कम से कम हम लालच के स्तर को बढ़ा सकते हैं, बड़े भलाई के लिए। सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी, उन लोगों के लिए जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।


शांति का मतलब तूफानों की अनुपस्थिति नहीं है। शांति उनसे जीना सीखना है। हम हर दिन को परिपूर्ण नहीं बना सकते, लेकिन शांति इस अहसास में निहित है कि ऐसा होना जरूरी नहीं है। हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ हमसे हर जगह उम्मीदें होती हैं, घर पर, काम पर, और सामान्य मनुष्य होने के नाते, हर बार उन उम्मीदों पर खरा उतरना संभव नहीं है। एक बार जब हम इसे समझ जाते हैं, तो हम तैयार हो जाते हैं, और बस इतना ही लगता है। मैंने कुछ समय पहले एक विचार लिखा था: "जीवन आपको वह नहीं देता जिसका आप सामना करना चाहेंगे; आपको उसका सामना करना होगा जो आपके लिए आता है।" और यह अहसास मुझे किसी भी चीज़ का सामना करने में मदद करेगा, बहादुर बनने के लिए, दूसरों के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए, ताकि बाहरी अराजकता मेरी आंतरिक शांति को भंग न कर सके।


दूसरा तरीका थोड़ा गहरा है: स्वयं की अनुभूति। पहले जैसा ही, फिर भी अलग। यह दार्शनिक लग सकता है, और हाँ, यह कुछ हद तक ऐसा ही है। यह विचार मुझमें बौद्ध धर्म, जैन धर्म और कांट के लेखन में जो कुछ मैंने पढ़ा है, उसके माध्यम से आकार लिया है।


इच्छा, सुख, क्रोध और आसक्ति ही दुख के मूल कारण हैं और अहंकार को जन्म देते हैं। अहंकार ही दुख का एकमात्र मूल और आधार है। यदि हम अपने इन चार पहलुओं को समझ और प्रबंधित कर सकें, तो हमें अहंकार पर कुछ हद तक नियंत्रण मिल सकता है। और यदि हम अहंकार को नियंत्रित कर सकें, तो शायद हम इस खोज के अंत के करीब आ सकते हैं। क्योंकि दुख की अवधारणा तब उत्पन्न होती है जब "मैं" होता है, और "मैं" के बिना कोई दुख नहीं होता। मुझे पता है कि इसे समझना कठिन है, जैसे आप स्वयं को कैसे छोड़ सकते हैं?


यदि मुझे इसे सरल शब्दों में कहना पड़े, तो स्वयं अहंकार के अलावा और कुछ नहीं है, जो आपको सत्य से छिपाता है। और सत्य यह है कि आप वास्तव में कभी पीड़ित नहीं होते, यह सिर्फ आपका काल्पनिक 'स्वयं' है जो पीड़ित होता है। आप दिव्य हैं, ऐसा कुछ भी नहीं है जो दुख का कारण बन सके। मुझे पता है कि यह अवधारणा गहरी है, और मुझे पता है कि इसे पूरी तरह से समझना मुश्किल है। इसलिए, हम भविष्य में इसमें गहराई से उतरने की कोशिश करेंगे, अहंकार और मुक्ति पर चर्चा करेंगे।


अंत में, मेरे लिए, ईमानदारी से कहूँ तो, मैं पहले दृष्टिकोण को पसंद करता हूँ। यह आसान लगता है, कम से कम शुरुआत के लिए। लेकिन क्या खोज यहीं खत्म हो जाती है? मैं कहूँगा नहीं। यह अंत नहीं है, शाश्वत सत्य की तलाश के संदर्भ में नहीं, बल्कि शायद यह एक अंत की शुरुआत है। भ्रम का अंत। अंधस्वीकृति का अंत। और शायद कुछ और की शुरुआत, स्वयं की एक व्यक्तिगत खोज, सत्य और शाश्वत की।


जैसे-जैसे हम इस यात्रा को जारी रखेंगे, हम विभिन्न दर्शनों और मेरी अपनी छोटी-छोटी व्याख्याओं का पता लगाएंगे।


और तब तक, आइए एक बात याद रखने की कोशिश करें, कुछ ऐसा जो सुकरात ने एक बार प्रसिद्ध रूप से कहा था:

“तुम कुछ नहीं जानते।”


End

The stories, metaphors, and characters mentioned in this piece are fictional and symbolic. They are intended to provoke thought and self-reflection, not to target or offend any individual, group, or belief system.

 
 
 

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